Sunday, May 3, 2009

हमें बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर के संदेश को जरा उदार होकर पढ़ना चाहिए. उनका स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर आग्रह केवल दलितों के लिए नहीं है, वह मानव मात्र के लिए है. जातिवाद ने केवल दलितों या अछूतों को ही नुकसान नहीं पहुँचाया है, केवल हिंदुओं को ही नुकसान नहीं पहुँचाया है, बल्कि पूरे भारतीय समाज को नुकसान पहुँचाया है, उसे वैज्ञानिक दृष्टि का विरोधी, अंधविश्वासों का समर्थक, निराशावादी, अपनी दयनीय स्थिति में संतुष्ट रहने वाला इस हिंदुत्ववादी वर्णवादी दृष्टि ने ही बनाया है. यही कारण है कि विज्ञान के क्षेत्र में हमारा लगभग कोई योगदान नहीं है. विज्ञान के शोधार्थियों और प्रोफेसरों द्वारा जन्मपत्रियाँ बनवाना कितना अश्लील है. एक तरफ हम अमरीका की संपन्नता से अभिभूत अमरीकावासी बनने को व्यग्र हैं तो दूसरी ओर वैज्ञानिक दृष्टि से बैर पाल, नाना प्रकार के कथावाचकों को संत बना अपने सिर पर चढ़ा रहे हैं. जबकि दिन-प्रतिदिन उनके कारनामें समाज के सामने आ रहे हैं. 

ऐसी स्थिति में अपने देश को वैज्ञानिक दृष्टि और लोकतांत्रिक चेतना से संपन्न बनाने के लिए आवश्यक है कि भारत रत्‍न बाबासाहेब डॉ. भीम राव अंबेडकर के ग्रंथों को पढ़ें और उनके बताए मार्ग पर चलें. यह मार्ग बहुजन हिताय बहुजन सुखाय है. यह केवल दलितों या अछूतों के लिए नहीं है, बल्कि मानवमात्र के लिए है. डॉ. अंबेडकर के रास्ते में एक बौद्ध धम्म को स्वीकार करना भी है.